The Bengal Famine - 1943 (बंगाल का अकाल)
80 साल पहले बंगाल (मौजूदा बांग्लादेश, भारत का पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा) ने अकाल का वो भयानक दौर देखा था, जिसमें करीब 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान दे दी थी। ये द्वितीय विश्वयुद्ध का दौर था। माना जाता है कि उस वक्त अकाल की वजह अनाज के उत्पादन का घटना था, जबकि बंगाल से लगातार अनाज का निर्यात हो रहा था। हालांकि, विशेषज्ञों के तर्क इससे अलग हैं। बच्चों को फेंक रहे थे नदी में, जिंदा रहने के लिए खा रहे थे घास
लेखक मधुश्री मुखर्जी ने उस अकाल से बच निकले कुछ लोगों को खोज उनसे बातचीत के आधार पर अपनी किताब में लिखा है कि उस वक्त हालात ऐसे थे कि लोग भूख से तड़पते अपने बच्चों को नदी में फेंक रहे थे। न जाने ही कितने लोगों ने ट्रेन के सामने कूदकर अपनी जान दे दी थी।
लोग पत्तियां
और घास खाकर जिंदा थे। लोगों में सरकार की नीतियों
के खिलाफ प्रदर्शन करने का भी दम नहीं बचा था।
इस अकाल से वही लोग बचे जो रोजगार
की तलाश में कोलकाता
(कलकत्ता) चले आए थे या वे महिलाएं जिन्होंने
परिवार को पालने के लिए मजबूरी
में वेश्यावृत्ति करनी शुरू कर दी।
प्राकृतिक या मानवजनित त्रासदी
ये सिर्फ कोई प्राकृतिक
त्रासदी नहीं थी, बल्कि मानवनिर्मित भी थी। ये सच है कि जनवरी
1943 में आए तूफान ने बंगाल में चावल की फसल को नुकसान पहुंचाया
था, लेकिन इसके बावजूद
अनाज का उत्पादन घटा नहीं था।
इस विषय पर लिखने वाले ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक
और सोशल एक्टिविस्ट डॉ. गिडोन पोल्या
का मानना है कि बंगाल का अकाल 'मानवनिर्मित होलोकास्ट'
था।
इसके पीछे अंग्रेज सरकार की नीतियां
जिम्मेदार थीं। इस साल बंगाल में अनाज की पैदावार बहुत अच्छी हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने मुनाफे के लिए भारी मात्रा में अनाज ब्रिटेन
भेजना शुरू कर दिया और इसी के चलते बंगाल में अनाज की कमी हुई।
चर्चिल थे जिम्मेदार
वहीं, जाने-माने अर्थशात्री अमर्त्य सेन का भी मानना है कि 1943 में अनाज के उत्पादन में कोई खास कमी नहीं आई थी, बल्कि 1941 की तुलना में उत्पादन पहले से ज्यादा था।
इसके लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन
चर्चिल को सबसे ज्यादा
जिम्मेदार बताया जाता है, जिन्होंने स्थिति
से वाकिफ होने के बाद भी अमेरिका और कनाडा के इमरजेंसी फूड सप्लाई के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। इन्होंने
प्रभावित राज्यों
की मदद की पेशकश की थी।
जानकारों का कहना है कि चर्चिल
अगर चाहते तो इस त्रासदी को रोका जा सकता था। वहीं, बर्मा (मौजूदा म्यांमार)
पर जापान के आक्रमण
को भी इसकी वजह माना जाता है। कहा जाता है कि जापान के हमले के चलते बर्मा से भारत में चावल की सप्लाई बंद हो गई थी।
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