एम. एस. स्वामीनाथन का जन्म:
7 अगस्त
1925, कुम्भकोणम, तमिलनाडु) अनुवांशिकी विशेषज्ञ और अंतर्राष्ट्रीय
प्रशासक, जो भारत की 'हरित क्रांति' में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए विख्यात हैं। इन्होंने
1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित करके उच्च उत्पादकता वाले गेहूँ के संकर बीज विकसित किए थे। 'हरित क्रांति' कार्यक्रम के तहत ज़्यादा उपज देने वाले गेहूं और चावल के बीज ग़रीब किसानों के खेतों में लगाए गए थे। इस क्रांति ने भारत को दुनिया में खाद्यान्न की सर्वाधिक कमी वाले देश के कलंक से उबारकर
25 वर्ष से कम समय में आत्मनिर्भर बना दिया था।
उस समय से भारत के कृषि पुनर्जागरण ने स्वामीनाथन को 'कृषि क्रांति आंदोलन' के वैज्ञानिक नेता के रूप में ख्याति दिलाई। उनके द्वारा सदाबाहर क्रांति की ओर उन्मुख अवलंबनीय कृषि की वकालत ने उन्हें अवलंबनीय खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में विश्व नेता का दर्जा दिलाया। एम. एस. स्वामीनाथन को 'विज्ञान एवं अभियांत्रिकी' के क्षेत्र में 'भारत सरकार' द्वारा सन 1967 में 'पद्म श्री', 1972 में 'पद्म भूषण' और 1989 में 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया था।
उन्होंने करियर से सम्बंधित
अपने निर्णय
को इस कदर बताया की : “मुझे
1943 में बंगाल में सुखा देखकर वैयक्तिक
प्रेरणा मिली, उस समय मई यूनिवर्सिटी ऑफ़ केर्लाका विद्यार्थी
था. वहा तीव्र चावल जमा करके रखा गया था और तक़रीबन 3 लाख लोग बंगाल में भूक की वजह से मारे गये थे. इसिलिये उस समय हर एक इंसान आज़ादी के लिये संघर्ष
कर रहा था और इसीलिये मैंने देश के लिये कुछ करने की चाह से किसानो को सहायता करने के उद्देश्य
से एग्रीकल्चर
रिसर्च को चुना.”
उन्होने इस विषय पर बहुमुल्य लेख भी लिखे। जिससे उनकी तथा संस्थान की ख्याती पूरे विश्व में प्रसंशा की पात्र बनी। बौने किस्म के गेहुँ के बीज उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली के किसानों को वितरित किये गये। जिससे भारत में गेहुँ की अच्छी पैदावार हुई। 1967 से 1968 में इस बात पर जोर दिया गया कि योजना का दायरा सिर्फ एक ही फसल तक न रखा जाये। वरन एक ही खेत में एक के बाद दुसरी अर्थात एक साथ एक साल में अधिक से अधिक फसले उगाकर पैदावार और बढाई जाये। इसके लिये एक ओर अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग बढाया गया तो वहीं दूसरी ओर खेती करने के लिये नये-नये तरिकों का प्रयोग और सिंचाई की भी अच्छी व्यवस्था की गई।
डॉ. स्वामीनाथन को अप्रैल 1979 में योजना आयोग का सदस्य बनाया गया। उनकी सलाह पर आयोग के द्वारा प्रगती पूर्ण कार्य हुए। 1982 तक वे योजना आयोग में रहे। उनके कार्यों को हर जगह सराहा गया। अपने कार्यो की सफलता से डॉ. स्वामीनाथन को अंर्तराष्ट्रीय ख्याती भी प्राप्त हुई। 1983 में वे अंर्तराष्ट्रीय संस्थान मनिला के महानिदेशक बनाये गये और उन्होने 1988 तक यहाँ कार्य किया। डॉ. स्वामीनाथन को अप्रैल 1979 में योजना आयोग का सदस्य बनाया गया। उनकी सलाह पर आयोग के द्वारा प्रगती पूर्ण कार्य हुए। 1982 तक वे योजना आयोग में रहे। उनके कार्यों को हर जगह सराहा गया।
अपने कार्यो की सफलता से डॉ. स्वामीनाथन को अंर्तराष्ट्रीय ख्याती भी प्राप्त हुई। 1983 में वे अंर्तराष्ट्रीय संस्थान मनिला के महानिदेशक बनाये गये और उन्होने 1988 तक यहाँ कार्य किया। डॉ. स्वामीनाथन को अप्रैल 1979 में योजना आयोग का सदस्य बनाया गया। उनकी सलाह पर आयोग के द्वारा प्रगती पूर्ण कार्य हुए। 1982 तक वे योजना आयोग में रहे। उनके कार्यों को हर जगह सराहा गया। अपने कार्यो की सफलता से डॉ. स्वामीनाथन को अंर्तराष्ट्रीय ख्याती भी प्राप्त हुई। 1983 में वे अंर्तराष्ट्रीय संस्थान मनिला के महानिदेशक बनाये गये और उन्होने 1988 तक यहाँ कार्य किया।
उन्हें पद्म श्री (1967), पद्म भूषण (1972) और पद्म विभूषण (1989) से भी सम्मानित किया गया है। उनकी महान विद्वत्ता को स्वीकरते हुए इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी और बांग्लादेश, चीन, इटली, स्वीडन, अमरीका तथा सोवियत संघ की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों में उन्हें शामिल किया गया है। वह 'वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंसेज़' के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। 1999 में टाइम पत्रिका ने स्वामीनाथन को 20वीं सदी के 20 सबसे प्रभावशाली एशियाई व्यक्तियों में से एक बताया था।
पुरस्कार
- 1971
में सामुदायिक नेतृत्व के
लिए ‘मैग्सेसे पुरस्कार’ से
नवाजा गया।
- 1986
में उन्हे
‘अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस
पुरस्कार’
- 1987 में एम. एस. स्वामीनाथन को पहला ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’ मिला।
- एम. एस.
स्वामीनाथन को
1991 में अमेरिका में
‘टाइलर पुरस्कार’ से नवाजा
गया।
- 1994
में पर्यावरण तकनीक
के लिए
जापान का
‘होंडा पुरस्कार’ से
सम्मानित किया
गया।
- 1997
में फ़्राँस का
‘ऑर्डर दु
मेरिट एग्रीकोल’ (कृषि
में योग्यताक्रम)
- 1998
में मिसूरी बॉटेनिकल गार्डन (अमरीका) का
‘हेनरी शॉ
पदक’
- 1999
में ‘वॉल्वो इंटरनेशनल एंवायरमेंट पुरस्कार’
- 1999
में ही
‘यूनेस्को गांधी
स्वर्ग पदक’
से सम्मानित
- एम. एस.
स्वामीनाथन को
‘विज्ञान एवं
अभियांत्रिकी’ के
क्षेत्र में
‘भारत सरकार’
द्वारा सन
1967 में ‘पद्म श्री’,
1972 में ‘पद्म भूषण’
और 1989 में
‘पद्म विभूषण’ से
सम्मानित किया
गया था।
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